दृष्टि और लक्ष्य

दृष्टि और लक्ष्य

हमारी दृष्टि

पृष्ठभूमि और उद्देश्य: हम खाद्य उद्योग को स्वस्थ, पारदर्शी, टिकाऊ और समाज के प्रति जिम्मेदार व्यवसाय मे बदलने की ईच्छा रखते हैं।

हमारा मुख्य मकसद जैविक खेती करने बाले किसानों को जोड़ना और हिस्सेदारी विकसित करना है और खाद्य प्रणाली ये समर्थन करता है कि हम कृर्षि प्रनालियों को सुधारने और बदलने के लिए काम कर रहे हैं। हम जैविक खेती के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लाभ के बारे में ज्ञान अंतराल को भरने और व्यवहार्यता और भारतीय कृषि प्रणाली की स्थिरता को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।

हम उपभोक्ताओं को ऐसे विकल्प बनाने के लिए सशक्त बाना रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य और शिक्षा कि पहुंच के माध्यम से अपने समुदायों के स्वास्थ्य मे सुधार लाएंगे और जनता, नीति निर्माताओं, वैग्यानिकों और उद्योगों के लिए संसाधन के रुप मे विग्यान पर आधारित सतत जैविक आहार एवं खेती का समर्थन करने के श्रोत के रूप मे कार्य करेंगे। हमारा एक महत्वपूर्ण जक्ष्य जैविक प्रथाओं और वस्तुओं को मजबूत करना और विस्तार करना है जो जहरीले, कृत्रिम रसायनों के उपयोग को कम करते हैं और मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को स्पष्ट लाभ देते हैं।

इसलिए हम कुछ महत्वपूर्ण जैविक उत्पाद विकसित करके जैविक खेती के मूलभूत सिद्धातों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जो रसायनों के उपयोग के कारण दिनप्रतिदिन खराब हो रहे मिट्टी की उरबरत्व क्षमता को बढाने मे मददगार है। हम जैविक उर्वरकों का उपयोग करके हमारी मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने की कोशिश करते हैं।

हम शीर्ष गुणवत्ता वाले जैविक उर्वरक पर काम कर रहे हैं जो जमीन से उगाई जाने वाली फसलों, सब्जियों, खाद्य पदार्थों के बेहतर विकास के लिए आवश्यक है।

हमारे उत्पाद फसलों की बेहतर वृद्धि के अनुसार बनाए जाते हैं और मिट्टी की उर्वरता भी विकसित करते हैं।

हमारा लक्ष्य

मूल मान्यताएं जो हमें अपने लक्ष्य की ओर प्रेरित करता है।

21 वीं सदी की शुरुआत में दुनिया और नेतागन नींद से जागे और बैठकों के सिलसिले की व्यवस्था शुरु की और निश्चितरुप से समझे कि अभी से पृथ्वी की रक्षा करना शुरू करें अन्यथा कोई भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता है । (पर्यावरण बचाओ)। फिर भी एक ही समय मे यह गतिविधि और प्रतिक्रिया एक राजनीतिक या व्यावसायिक व्यवस्था पद्धति जैसा दिखता है। संवाद की सफलता इस बात पर भरोसेमंद हो सकती है कि नई खोज या नए परीक्षण कितने अधिक और कितने बेहतर उत्पादन कर सकते हैं। इस संदर्भ मे भहाँ दो प्रश्न उभरते हैं।

  1. 1. कितना (मात्रा): क्या भूमि कुछ भी बनाने कि स्थिति मे है? उचित प्रतिक्रिया है नहीं, क्योंकि रसायनिक उर्वरक ने प्रभावी रुप से सबकुछ बर्बाद कर रहा है।
  2. 2. कितना बेहतर (गुणवत्ता):जबाव यह कि लम्वे समय से रासायनिक उर्वरक के उपयोग से भूमि रासायनिक यौगिकों की अधिकता से बुड़ी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है और जो भी उत्पादन हम इससे प्राप्त कर रहे हैं वह मानव शरीर के लिए हानिकारक रसायनों से भड़ा है।
  • • उपरोक्त अवतरण के साथ समस्या है शिकायत, असंतोष और निराशा जो आज कि वास्तविकता है। सेसा हो सकता है और इस तरह का तर्क अवश्य होना भी चाहिए और मैं अपने स्तर से सवसे अच्छा प्रयास करुंगा। इसके लिए अव प्रकृति को सामान्य तरीके से समझने की शुरुआत करनी होगी। लाखों बर्ष पहले मनुष्य ने खेती की शुरुआत की थी और बहुत लम्वे वर्षों तक इसे करते रहे हैं और खती को नए स्वरुप तक पहुचाने के लिए नई रणनीतियों को सामिल किया। फिर भी, हाल के 50 वर्षों मे मानव ने प्रकृति का हाथ छोड़ दिया और रसायन विग्यान का हाथ थामा है जो मिट्टी को असाधारण रुप से हानी पहुंचाया है। हमने अनदेखा किया है कि रसायन विग्यान केवल कुछ पहले रुपांकित किया गया है जबकी प्रकृति ने अपने विग्यान को स्थापित करने में 400 करोड़ वर्ष लगाया और हाल क 50 वर्षों कि गलतियों ने प्रकृति के खोज को वर्वाद कर दिया है। यह हमारा मानना है कि हमारे पास हमरे गलतियों को फिर से सुधारने के लिए पर्याप्त उर्जा है। इस लिए हमार पहला कदम होगा भूमि को पुनर्निमित करें फिर गुणवत्ता और मात्रा के बारे मे सोचें। यदि भूमि उनुत्पादक और मृत हो जाएगा तो कुछ भी पैदा नहीं हो पाएगा।

हर कोई यह महसूस करता है कि अच्छी जलवायू, पर्याप्तपानी, विशिष्ट उर्वरक, उपयुक्त्त मिट्टी इत्यादि खेती कि मौलिक जरूरत है। यह सामान्य सा जबाब है और मान्य भी। जैसे भी हो सकता है, प्रत्येक पौधे के अच्छे और तेज विकास के लिए नमी और संतुलित भोजन की आवश्यकत होती है और मैं इसकेलिए वैग्यानिक दृष्टिकोन अपनाता हूँ। अगर आप अपने पौधों को यह सुविधा प्रदान करते हैं तो आप बिना किसी कृत्रिम हार्मोन या अकार्बनिक उर्वरक के पूरी तरह से शुद्ध प्राकृतिक रुप से फसल उपजा सकते हैं। इसलिए इसे प्राकृतिक, कार्बनिक और जैविक कहा जाता है।

डॉ० सोम की अनूठी अवधारणा पर्यावरण को अधिक शुद्ध और फलदायी बनाता है। डॉ० सोम इको- फ्रेंडली है और मिट्टी के उत्पादन को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

हम सोचते हैं कि पूरी दुनियां खेती मे इस तरह के सहायक वस्तु की खोज कर रही है। हम अपने को सुरक्षित बनाते हैं पर कुछ वर्षों बाद यह मिट्टी खतपतवार उगाने लायक भी नहीं रहेगी। इसलिए यह हमारे खेतों को पुनर्निमाण का आदर्श अवसर है ताकि हम अपने अगली पीढी को अनुकूल हालात और उद्पादक मिट्टी दे सकें। यदि हम गंभीरता से नहीं सोचेंगे तो अगली पीढी को इसके लिए भुगतना होगा।

डॉ-सोम पत्तियों और तने के छिद्रों पर काई (नमी) को रोकने मे मदद करता है औल हवा जब पौधों के बीच जाती है ते हवा मे खुले तौर पर सुलभ नाइट्रोजन (लगभग 72%) पौधों के आवश्यकता के अनुसार जल्दी पत्तियों एवं तनें द्वारा अवशोषित कर लेते है। पत्तियों की क्रिस्टलाइज्ड प्रकार की सतह के कारण प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बहुप्रतिबिंब के साथ कार्य करेगी और आपके पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण अधिक मात्रा मे प्रकाश देगी। घुमावदार टीलों की तरह क्रिस्टल के कारण नमी सरलता से टूट जाती है और पानी आपके पौधों पर फैलता है इसलिए हमें पानी को अवशोषित करने के लिए अधिक सतह क्षेत्र मिलता है। जब पौधों पर फल लगते हैं और हम पौधों पर इस धोल का छिड़काव करते हैं तब फल तेजी से बडे होते हैं। किसानों को मुख्य लाभ यही है कि विना किसी रसायनिक खाद के प्रयोग के अधिक लाभ पाते है।

दूसरी आम जड़ी बूटियां पत्त्तियों और तने के छिद्रों को फैलाती है ताकि हवा जब पौधों से गुजरती है तो विशुद्ध पानी के प्रकार मे पत्तियों पर संग्रहित नमी और प्रतिरोध शक्ति से मुक्त शुक्ष्मजीव एक अलग दूसरी पत्तियों और तनो मे अवशोषित हो जाते हैं। इसलिए पौधे ठोस स्थिति के साथ त्वरित विकसित होते हैं। ठोस प्रकार की सतह के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया वहुप्रतिविंब के साथ कार्य करेगी और आपके पौधों को अधिक मात्रा मे प्रकाश प्राप्त होगा जो आपके पौधों के विकास के लिए सकारात्मक है। बहुमूल्य पत्थरों के समान ढलानों के कारण नमी लम्ववत टूटती है और पानी पौधों पर फैल जाता है ताकि हमे पानी से सराबोर कर देने के लिए बढा हुआ सतह क्षेत्र मिल सके। उस समय जब जैविक उत्पाद पौधों पर प्रेशित होता है और हम पौधों पर इसका छिड़काव करते हैं तो प्राक्रतिक उत्पाद का विकास तेज और बड़ा होगा। यह कृषकों को मुख्य लाभ है कि बिना किसी वास्तविक खाद का प्रयोग किये अधिक फायदा प्राप्त होता है।

Hi-tech Agriculture in India

High-tech farming mainly refers to agricultural operations involving the latest technologies. It is a capital intensive agriculture since large capital outlay is required
towards purchase of specialized equipment, maintenance of assets, training of labour, etc. Hi-tech agriculture mainly relates to commercial farming system aimed at catering to the needs of both, domestic as well as export markets. It uses farming technology to increase yields, ensures high quality (usually pesticide-free) and realizes increased market value. Growing temperate vegetables in a tropical climate and developing disease-resistant plants through genetic engineering are common examples of hi-tech agriculture.

Advantages of high-technology farming:

  • Increase in yield up to 5 to 8 times – high productivity per unit area
  • Significant saving in key inputs like water (up to 50%), fertilizers (25%) and pesticides. 
  • Better growth and uniformity in quality
  • Feasible even in undulating terrains, saline, water logged, sandy & hilly lands
hi_INHI